Saturday, 14 September 2013

आसाराम बापू  ये "बापू " शब्द  अपने -आप में ही आकर्षित करे ,जो "पिता" के रूप में भी जाना जाता है. में सोचती हो आसाराम इस  के लिए योग्य नहीं है , हम क्यों इन सब पे विशवास करते है? और वो गलत होते होवे भी हमें अपने आखे पर पाठी बंद लेते है . क्या भगवन से मिलने का ये ही एक  जरीय रह गया है. में सोच में पद गए हो की हमें अपने -आपको इतना भोधिमान कहते और एसे इन्सान के हमारा कुछ नहीं चलता एसा क्यों ये अब तक  मुझे पता नहीं चला.

बापू से हमें गांधीजी की याद आती है ,जिसने इश देश के लिए अपने आपको खोरबन होने के लिए एक बार भी नही सोचा और ये एक बापू है  जिसने वो  शब्द की भी आदर  ना  करते होवे बस अपना वेपार में हमें जयसे जनता को खोरबन करने के लिए एक बार में ही सोच लिया है ,और वो करते ही जार रहा है .

हमें बोलते है हमें एक लोकतंत्र में रहते है पर इश लोकतंत्र का नाम ख़राब करने में एसे व्यक्ति का हाथ होता है जो बस दोसरो को तकलीफ दे कर अपना घर बसने जानते है . हमें उनकी टिका तो याद होगी जो उन्होंने डेल्ही गंग रपे  में दिया ता वो ठोस ता क्या ? मुझे  लगता है की क्या एक खोनी जब मरने आता है तो  क्या हमें उसे अपना भाई  बनाले  तो कुछ नहीं होगा , तो हमारे देश में  कानून की कोई जरूरत नहीं होनी चाहिए थी .

एक बात तो है की हमें हिंदुस्तानी को गुमराह करना कोई मोश्किल नही है , अभी भी समय  है अपनी आवाज को उतो और इश देश को एसे डोंगी शादो से बचाओ . ये  होना मोश्किल है पर हमें एक कदम बदन होगा . अपनी प्रगति के लिया .

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