
बापू से हमें गांधीजी की याद आती है ,जिसने इश देश के लिए अपने आपको खोरबन होने के लिए एक बार भी नही सोचा और ये एक बापू है जिसने वो शब्द की भी आदर ना करते होवे बस अपना वेपार में हमें जयसे जनता को खोरबन करने के लिए एक बार में ही सोच लिया है ,और वो करते ही जार रहा है .
हमें बोलते है हमें एक लोकतंत्र में
रहते
है
पर
इश
लोकतंत्र
का
नाम
ख़राब
करने
में
एसे
व्यक्ति
का
हाथ
होता
है
जो
बस
दोसरो
को
तकलीफ
दे
कर
अपना
घर
बसने
जानते
है
. हमें
उनकी
टिका
तो
याद
होगी
जो
उन्होंने
डेल्ही
गंग
रपे में दिया ता वो ठोस ता क्या ? मुझे लगता है की क्या एक खोनी जब मरने आता है तो क्या
हमें
उसे
अपना
भाई बनाले तो कुछ
नहीं
होगा
, तो
हमारे
देश
में कानून की कोई जरूरत नहीं होनी चाहिए थी .
एक बात तो है की हमें हिंदुस्तानी
को गुमराह
करना कोई
मोश्किल नही है , अभी भी समय है अपनी आवाज को उतो और इश देश को एसे डोंगी शादो
से बचाओ . ये होना मोश्किल है
पर हमें एक कदम
बदन होगा . अपनी प्रगति
के लिया .
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